मोहन भागवत के 24 सुविचार

मोहन भागवत के अनमोल विचार

Mohan Bhagwat Hindi Quotes

Mohan Bhagwat Quotes in Hindi

हमारे समाज को बांट कर पहले देश में आक्रमण हुए। फिर बाहर से आए लोगों ने इसका फायदा उठाया। नहीं तो हमारी ओर नजर उठाकर देखने की भी किसी में हिम्मत नहीं थी।

मोहन भागवत

जब समाज में अपनापन खत्म होता है तो स्वार्थ अपने आप बड़ा हो जाता है।

मोहन भागवत

समाज में बेरोजगारी बढ़ रही है क्योंकि लोग काम में भी बड़ा छोटा देखते हैं।

मोहन भागवत

सिर्फ एक विचारधारा या कोई एक शख्स देश को बना या बिगाड़ नहीं सकता।

मोहन भागवत

राजा का अर्थ होता है सबका सेवक न कि शासक।

मोहन भागवत

जाति भगवान ने नहीं, पंडितों ने बनाई।

मोहन भागवत

भगवान के लिए हम सभी एक हैं।

मोहन भागवत

राष्ट्र की उन्नति में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित होना पड़ेगा। बिना संगठित हुए राष्ट्र कभी परम वैभव पर नहीं पहुंच सकता।

मोहन भागवत

जाति-पाती, वर्ग भिन्नता, अगड़ा- पिछड़ा इन सब में समाज पडकर अपना अस्तित्व खो बैठता है। समय की मांग है कि इन सभी पूर्वाग्रह से बाहर निकल कर भारतीय बने, देशभक्त बने।

मोहन भागवत

स्वयंसेवक जिस भी क्षेत्र में जाता है, वह वहां के अनुशासन का पालन अवश्य करता है। यह उसके संस्कार हैं, यही स्वयंसेवक को विशिष्ट बनाता है।

मोहन भागवत

पूर्व में क्या हुआ बिना इस पर विचार किए वर्तमान में सभी को सामान्य दृष्टि से अपनाना होगा और उन्हें हुआ सम्मान तथा दायित्व देना होगा जिनके वह अधिकारी हैं।

मोहन भागवत

संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी है। संगठित होकर ही व्यक्ति तथा राष्ट्र का भाग्य बदला जा सकता है।

मोहन भागवत

बिना किसी आलोचना पर ध्यान दिए, अनेकों जख्मों को सहते हुए हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना होगा। लोग फलदार वृक्ष को ही पत्थर मारते हैं, यह समझना होगा।

मोहन भागवत

सैकड़ों साल देश गुलाम रहा, गुलामी की मानसिकता होना समझा जा सकता है किंतु अब ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम गुलामी की मानसिकता से बाहर ना निकले। पारंपरिक रूढ़ीवादी विचारों को दरकिनार करते हुए नए भारत के लिए कदम बढ़ाए।

मोहन भागवत

समाज के लोगों को एकजुट करना, तराजू में मेंढक तोलने के बराबर है। समाज के चार लोग तभी एक साथ होते हैं, जब पांचवा कंधे पर हो। इस प्रकार समाज का विकास संभव नहीं है। आपसी वैमनस्य की भावना से राष्ट्र का कभी भला नहीं हो सकता।

मोहन भागवत

संघ को किसी विशेष विचारधारा मे बांधने की कोशिश व्यर्थ है। यह किताब और पत्र की सीमाओं में बंधने वाला नहीं है। यह जीवन जीने का मार्ग बताता है। जीवन और भविष्य का निर्माण करता है। राष्ट्र का उद्धार हो, इसके लिए संघर्ष करता है। यह विचारधारा से परे है।

मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति लोगों ने गलत प्रचार प्रसार समाज के बीच जाकर किया। यह वह लोग हैं जो समाज को संगठित होते नहीं देखना चाहते। यह लोग संघ में एक साल रहकर देखें, सारी मानसिक विकृतियां शांत हो जाएंगी।

मोहन भागवत

समर्थ की उपेक्षा विश्व में कोई नहीं करता, इसीलिए समर्थवान होना आवश्यक है।

मोहन भागवत

कभी-कभी विरोधियों का सामना करके भी लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है।

मोहन भागवत

हमारे लिए सभी अपने हैं, कोई पराया नहीं है। चाहे वह किसी भी जाति, पंथ, मजहब या राजनीति से संबंध रखता हो।

मोहन भागवत

अधिकांश लोगों का विनाश उत्थान के समय होता है, संघर्ष के समय नहीं। इसलिए कहा जाता है उन्नति विनाश का बीज अपने साथ छुपा कर लाती है।

मोहन भागवत

सुख के लिए बाहर की दौड़ लगाना व्यर्थ है। सुख अपने भीतर है, उसे ढूंढने का प्रयत्न करना चाहिए।

मोहन भागवत

हमारी नाकामी और जाति, पंथ विभिन्नता ने दूसरों को फलने फूलने का बल दिया, उनकी हैसियत नहीं थी। वह हमारे इस कृत्य से बड़े होने लगे।

मोहन भागवत

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