महात्मा गांधी का जीवन परिचय
- नाम – महात्मा गांधी
- जन्म – 2 अक्टूबर 1869 ई०, पोरबन्दर (गुजरात)
- पिता – करमचंद गांधी
- माता – पुतली बाई गाँधी
- पत्नी – कस्तूरबा गांधी
Biography of Mahatma Gandhi in Hindi
महात्मा गांधी, इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। इनका जन्म गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। ये मध्यमवर्ग परिवार से ताल्लुक रखते थे इनका बचपन का दौर ग्रामीण क्षेत्र में ही बिता और इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव से ही पूरा किया। पढ़ाई के दौरान ही लगभग 13 वर्ष की उम्र में इनकी शादी कस्तूरबा गांधी से हो गई।
प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद यह अपने बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए 1889 ई० में इंग्लैंड गए । बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1891 ईस्वी में भारत लौटे और भारत लौटने के बाद अब उन्हें वकालत करने की जरूरत पड़ रही थी क्योंकि उनकी वकालत की पढ़ाई पूरी हो गई थी।
इसी दौरान उनकी मुलाकात एक मुस्लिम व्यापारी से होता है और वह मुस्लिम व्यापारी गांधी जी से आग्रह करता है कि वह दक्षिण अफ्रीका चले और उनके मुकदमे का वकालत करे।
गांधीजी मुस्लिम व्यापारी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं और 1893 ईस्वी में दक्षिण अफ्रीका चले जाते हैं इसी समय दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के साथ एक घटना घटित होती है और इस घटना को टर्निंग प्वाइंट के रूप में भी देखा जाता है होता यूं है कि उस समय दक्षिण अफ्रीका में श्वेत और अश्वेत वाद काफी चरम सीमा में होती है और इसी समय गांधीजी डरबन से प्रीटोरिया की यात्रा ट्रेन के द्वारा कर रहे होते हैं और यात्रा के दौरान ही मेरिनस्वर्ग नामक रेलवे स्टेशन पर रेलवे अधिकारी के द्वारा गांधी जी को ट्रेन से उतार दिया जाता है, इस घटना को रेल कांड के भी नाम से जाना जाता है इस के बाद गांधी जी ने गोरे और कालों के भेद भाव को मिटाने का प्रण भी लिया था।
गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रहकर ही कुछ महत्वपूर्ण कार्य भी किए थे जो कुछ इस प्रकार है
- 1894 – नटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की
- 1903 – द इंडियन ओपिनियन नामक अखबार प्रकाशित किया
- 1904 – फिनिक्स आश्रम की स्थापना की
- 1906 – प्रथम सत्याग्रह प्रयोग किया ( सत्याग्रह – सरल शब्दों में कहें तो सत्याग्रह सत्य और अहिंसा के माध्यम से सच्चाई की जीत के लिए प्रयास करना है )
- 1909 – हिंद स्वराज नामक पुस्तक लिखी
9 जनवरी 1915 को गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौटते हैं और इसी कारण इस दिन को भारत में प्रवासी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भारत वापस आने के बाद गांधीजी यहां की पृष्ठभूमि को समझने तथा अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने के लिए गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु चुनते हैं ।
इसके बाद ही 1916 ईस्वी में साबरमती आश्रम की स्थापना गुजरात में करते हैं। इसी समय यहां पर प्रथम विश्व युद्ध का दौर चल रहा था तो गाँधी जी ने यह फैसला किया की सबसे पहले अंग्रेजों का सहयोग किया जाए और इसलिए उन्होंने अंग्रेजों को सहयोग करने की नीति अपनाई जिससे अंग्रेज भारतीयों पर भी ध्यान दें और इनका ख्याल भी रखें ।
गाँधी जी को भर्ती करने वाला सार्जेंट भी कहा जाता है और और ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि गांधी जी ने भारतीयों को अंग्रेजी सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया था।
अब तक गांधीजी साबरमती आश्रम की स्थापना कर चुके थे और भारतीय राजनीति में भाग भी ले रहे थे कांग्रेस अधिवेशनो का भी हिस्सा बन रहे थे । इसी दौरान बिहार के चंपारण के स्थानीय नेता राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी से संपर्क किया और उनसे वहां के तिनकठिया प्रणाली के संबंध में बताया और उनसे आग्रह किया कि वह चंपारण आए और किसानों की स्थिति को देखें और किसानों के लिए कुछ करें।
गांधीजी ने आमंत्रण स्वीकार किया और चंपारण पहुंचे और किसानों के हाल को जाना। तिनकाठिया प्रणाली की बात करें तो यह 20 कट्ठे में से 3 कट्ठे पर नील की खेती करना अनिवार्य होता था और यह 3 कट्ठे सबसे उपजाऊ जमीन होती थी। इसी के परिणाम स्वरूप किसान इससे दुखी थे । नील की जड़ें इतनी लंबी होती थी की उपजाऊ जमीन को भी बंजर बना देते थे। किसान इस व्यवस्था से बचना चाहते थे लेकिन अंग्रेज और नीलहै जबरदस्ती निल की खेती करना चाहते थे और इसी परिणामस्वरूप गांधी जी ने सत्याग्रह किए और और तीन कठिया प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और इसे चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है।
इस सत्याग्रह के बाद ही गुरु रविंद्र नाथ टैगोर के द्वारा महात्मा गांधी को महात्मा की उपाधि दी गयी थी ।
इस सफल आंदोलन के बाद महात्मा गांधी ने 1918 ईस्वी में अहमदाबाद में मिल मजदूरों पर हो रहे अत्याचार और बोनस नहीं देने के कारण आंदोलन किया और मजदूरों के साथ मिलकर भूख हड़ताल भी किया, ये आंदोलन भी काफी हद तक सफल रहा।
इसके बाद उन्होंने खेड़ा आंदोलन किया यह आंदोलन फसल नष्ट हो जाने के बाद भी मजदूरों से मांगे जा रहे हैं लगान को माफ करने के लिए एक आंदोलन था। इनके प्रमुख सहयोगी सरदार वल्लभभाई पटेल थे।
इसी तरह गांधीजी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की अग्रगामी नेताओं में से एक बन गए। इन्होंने दक्षिण भारत मे भी में बहुत सारे काम किए हुए थे जिस कारण इन्हें प्रचलित होने में ज्यादा समय नहीं लगा।
और इसी बीच कुछ ऐसी घटनाएं घटती है जिसके कारण विरोध का माहौल बन जाता है और वह घटना थी 1919 ईस्वी में रोलेट एक्ट का लागू होना । रोलेट एक्ट के विरोध में ही जालियांवाला बाग हत्याकांड हो जाता है।इसके बाद खिलाफत आंदोलन की शुरुआत होती है ।
और अब असहयोग आंदोलन की नीव गांधी जी रखते हैं यह आंदोलन काफी तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी और इसे अंग्रेज दबाने की काफी कोशिश कर रहे थे ।
इसी बीच 5 फरवरी 1922 ई० को गोरखपुर में एक घटना घटित होती है जिसमें एक थानेदार समेत 21 सिपाहियों को जेल में बंद करके ग्रामीणों द्वारा आग के हवाले कर दी जाती हैं। इसी अग्निकांड को देखकर गांधीजी इस आंदोलन को हिंसात्मक रूप बताकर 11 फरवरी 1922 ईस्वी को असहयोग आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर देते हैं जिसका कई बड़े नेता निंदा भी करते हैं
इसी के परिणाम स्वरूप चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू दोनों मिलकर स्वराज पार्टी की स्थापना करते हैं क्योंकि गांधी जी का विचार इन लोगों से अलग हो चुका था ऐसा इनका मानना था और फिर अगले वर्ष इन दोनों के बीच समझौता होता है जिसे गांधी दास समझौता के नाम से जाना जाता है।
इसके बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाया गया और फिर दांडी मार्च किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य था नमक कर को तोड़ना साथ ही सविनय अवज्ञा आंदोलन को भी मजबूत करना था। इसके परिणाम स्वरूप गांधी इरविन समझौता होता है।
इसके बाद ही पूना पैक्ट समझौता महात्मा गांधी और भीमराव अंबेडकर के बीच होता है।
1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत गांधी जी द्वारा किया जाता है और इसमें प्रथम सत्याग्रही के रूप में बिनोवा भावे थे और इसे दिल्ली चलो के नाम से भी जाना जाता है।
भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया गया और जिसके परिणाम स्वरूप जीरो आवर ऑपरेशन चलाकर सभी को गिरफ्तार कर लिया गया इसके बाद दूसरी पंक्ति के नेताओं ने इस आगे बढ़ाया। अन्ततः भारत को स्वतंत्रता मिली और भारत 2 देशों में बट गया।
और 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर गांधीजी की हत्या कर दी।
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