हिंदी प्रेरणादायक कहानी
ब्राह्मणी और नेवला
बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक ब्राह्मण – ब्राह्मणी रहते थे। ब्राह्मणी ने घर में एक नेवला पाल रखा था। उसे नेवला बहुत प्यारा लगता था। और वह उसकी पूरी देखभाल करती थी। नेवला पूरे घर में घूमने को स्वतंत्र था।
कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी के एक लड़का पैदा हुआ। तब ब्राह्मण ने अपनी पत्नी से कहा, “देखो! हमारे घर में एक प्यारे से बच्चे ने जन्म लिया हैं। अब इस नेवले को घर से निकाल देते हैं। कहीं यह नेवला अपने बच्चे को नुकसान ना पहुंचा दे।”
ब्राह्मणी ने ब्राह्मण की बात नहीं मानी, क्योंकि उसे नेवला बहुत प्यारा था।
नेवला घर में पहले जैसे ही रहने लगा। ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ साथ उस नेवले का भी पूरा ख्याल रखती। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।
एक दिन ब्राह्मणी पास के कुएं से पानी लेने गई। बच्चा घर पर पालने में सो रहा था और नेवला पास में ही आराम कर रहा था।
इतने में कहीं से सांप आया और बच्चे के पालने की तरफ पढ़ने लगा। नेवले ने सांप को बच्चे की तरह आते देखकर, वह सतर्क हो गया। नेवला तो वैसे भी सांप का दुश्मन होता है। नेवला सांप के ऊपर टूट पड़ा। बहुत देर सांप से लड़ाई करने के बाद नेवले ने सांप के टुकड़े टुकड़े कर दिए। इस कारण घर में सब तरफ खून के छींटे बिखर गए। नेवले का मुंह भी खून से भर गया।
नेवला बहुत ही खुश हुआ कि उसने अपने मालिक के बेटे की जान बचा ली। वह अपनी बहादुरी दिखाने के लिए घर के दरवाजे पर बैठ गया। ताकि ब्राह्मणी जब आएगी, तो उसे इस काम के लिए शाबाशी देगी।
जब ब्राह्मणी कुएं से पानी लेकर लौटी, तो उसने दरवाजे पर खून से सने हुए नेवलें को देखा।
यह देखकर वह बहुत ही घबरा गई। उसे विचार आया कि इस दुष्ट नेवले ने मेरे बेटे को मार दिया है। इसलिए वह गुस्से से आग बबूला हो गई।
उसने अपने पानी से भरे हुए घड़े को नेवले के ऊपर जोर से पटक दिया। नेवला तुरंत ही मर गया। ब्राह्मणी रोती हुई घर के अंदर भागी।
अंदर उसने देखा, बच्चा तो आराम से पालने में सो रहा था। और पास में ही मरे हुए सांप के टुकड़े पड़े हुए थे। यह देखते ही उसे अपनी भूल मालूम हुई।
ब्राह्मणी अब पछताने लगी कि नेवले के अच्छे काम के बदले मैंने उसकी जान ले ली।
ब्राह्मण जब शाम को घर लौटा, तो उसे सारी बात बताई।
उसने ब्राह्मणी से कहा, “बिना सोच विचारे जो काम किया जाता है, उसका ऐसा ही परिणाम होता है।”
दोस्तों हमारे जीवन में भी बहुत सारे पल ऐसे आते हैं। जिसमे हम आवेश में आ जाते हैं। ऐसे में भावनाओं में बहे बगैर, पहले सोचे, समझे और फिर निर्णय लें।
क्योंकि कुछ देर बाद जब हमें अपनी गलती का एहसास होता है, तो फिर पछताने के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता है।
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