श्रीमद भगवद गीता के 67 अनमोल वचन Hindi Quotes of Bhagavad Gita

भगवत गीता की सीख

Bhagavad Gita Hindi Thoughts

Bhagavad Gita Quotes in Hindi

सुख और दुख का आना-जाना सर्दी और गर्मी की ऋतु के आने जाने के समान है। यह सब इंद्रिय बोध से उत्पन्न होते हैं। मनुष्य को अविचल भाव से इन सब को सहन करना सीखना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

जो मनुष्य सुख और दुख में विचलित नहीं होता है। दोनों में समभाव रखता है वह मनुष्य निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य हैं।

श्रीमद भगवद गीता

भौतिक शरीर का अंत अवश्यंभावी है। इसलिए हे अर्जुन युद्ध करो।

श्रीमद भगवद गीता

आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन हैं। शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता।

श्रीमद भगवद गीता

जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर नवीन भौतिक शरीर धारण करता है।

श्रीमद भगवद गीता

जो विद्वान होते हैं। वे न तो जीवित के लिए शोक करते हैं न हीं मृत के लिए शौक करते हैं।

श्रीमद भगवद गीता

आत्मा को ना तो कोई शस्त्र काट सकता है। न हीं अग्नि द्वारा जलाया जा सकता है, न हीं जल द्वारा भिगोया जा सकता है और ना ही वायु द्वारा सुखाया जा सकता है।

श्रीमद भगवद गीता

जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी निश्चित है इसलिए तुम्हें अपने कर्तव्य पालन में शोक नहीं करना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

शरीर में रहने वाले का कभी भी वध नहीं किया जा सकता है, इसलिए किसी भी जीव के लिए शोक करने की आवश्यकता नहीं है।

श्रीमद भगवद गीता

धर्म के लिए युद्ध करने से बढ़कर तुम्हारे लिए कोई कर्तव्य नहीं है।

श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवत गीता के सुविचार

तुम्हें कर्म करने का अधिकार है लेकिन कर्म के फलों के तुम अधिकारी नहीं हो। इसलिए कर्मफल के प्रति आसक्त हुए बिना अपना कर्म करें।

श्रीमद भगवद गीता

जिस प्रकार पानी में तैरती नांव को प्रचंड वायु दूर बहा ले जाती है। उसी प्रकार इंद्रियों का वेग भी मनुष्य की बुद्धि को हर लेता है।

श्रीमद भगवद गीता

न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्म के फल से छुटकारा पा सकता है और न ही केवल सन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।

श्रीमद भगवद गीता

जो लोग ध्यान का दिखावा करते हैं जबकि वास्तव में वे मन में इंद्रियभोग का चिंतन करते रहते हैं। वह सबसे बड़े धूर्त हैं।

श्रीमद भगवद गीता

कर्म ना करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है क्योंकि कर्म के बिना तो शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता।

श्रीमद भगवद गीता

हे अर्जुन! जब भी और जहां भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती हैं तब तब मैं इस धरती पर अवतार लेता हूं।

श्रीमद भगवद गीता

भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूं।

श्रीमद भगवद गीता

जिस भी भाव से सारे लोग मेरी शरण में आते हैं उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूं।

श्रीमद भगवद गीता

जो व्यक्ति अपने कर्म फल के प्रति अनासक्त हैं और जो अपने कर्तव्य का पालन करता है वही असली सन्यासी और योगी हैं।

श्रीमद भगवद गीता

मनुष्य अपने मन का इस्तेमाल, अपनी प्रगति में करना चाहिए, ना कि अपने को नीचे गिराने में। क्योंकि मन आपका मित्र भी बन सकता है और शत्रु भी।

श्रीमद भगवद गीता

जिसने अपने मन को जीत लिया। उसके लिए वो सर्वश्रेष्ठ मित्र बन जाएगा लेकिन जो ऐसा नहीं कर पाया उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाएगा।

श्रीमद भगवद गीता

हे अर्जुन! जो अधिक खाता है या बहुत कम खाता है, जो अधिक सोता है या पर्याप्त नहीं सोता है, उसके योगी बनने की कोई संभावना नहीं है।

श्रीमद भगवद गीता

मनुष्य को अपने चंचल और अस्थिर मन को वश में रखना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

वास्तविक योगी समस्त जीवो में मुझको और मुझ में समस्त जीवो को देखता है।

श्रीमद भगवद गीता

जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझ में देखता है उसके लिए ना मैं कभी अदृश्य होता हूं और ना वह मेरे लिए कभी अदृश्य होता है।

श्रीमद भगवद गीता

हे अर्जुन! शरीर त्यागते समय मनुष्य जिस जिस भाव का स्मरण करता है। वह उस भाव को निश्चित रूप से प्राप्त होता है।

श्रीमद भगवद गीता

यदि कोई प्रेम तथा भक्ति पूर्वक मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं।

श्रीमद भगवद गीता

ज्ञान से श्रेष्ठ ध्यान है, ध्यान से भी श्रेष्ठ है कर्म फलों का परित्याग।

श्रीमद भगवद गीता

जो सुख-दुख में, भय तथा चिंता में समभाव रहता है वह मुझे अत्यंत प्रिय है।

श्रीमद भगवद गीता

हे अर्जुन! निर्भयता, आत्म शुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान का अनुशीलन, दान, आत्म संयम, यज्ञ परायणता, वेदाध्ययन, तपस्या, सरलता, अहिंसा, सत्य, क्रोध विहीनता, त्याग, शांति, समस्त जीवो पर दया, लोभ विहीनता, संकल्प, तेज, क्षमा, पवित्रता, ईर्ष्या तथा सम्मान की अभिलाषा से मुक्ति,- यह सारे दिव्य गुण हैं, जो देवतुल्य पुरुषों में पाए जाते हैं।

श्रीमद भगवद गीता

अहंकार, घमंड, अभिमान, क्रोध, कठोरता तथा अज्ञान यह आसुरी स्वभाव वालों के गुण हैं।

श्रीमद भगवद गीता

नरक के तीन द्वार है-काम, क्रोध और लोभ। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को भी त्याग देना चाहिए, क्योंकि इनसे आत्मा का पतन होता है।

श्रीमद भगवद गीता

मनुष्य को सात्विक भोजन करना चाहिए, यह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला तथा बल, स्वास्थ्य, सुख तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है।

श्रीमद भगवद गीता

समस्त प्रकार के धर्म का परित्याग करो और मेरी शरण में चले आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। डरो मत।

श्रीमद भगवद गीता

मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बगैर निस्वार्थ और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

अपने जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए। न हीं भाग्य को दोष देना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

अपने आप को भगवान के प्रति समर्पित कर दो, यही सबसे बड़ा सहारा है।

श्रीमद भगवद गीता

इंसान अपने जन्म से नहीं अपने कर्म से महान बनता है।

श्रीमद भगवद गीता

जब इंसान अपने काम में आनंद खोज लेते हैं तो वह पूर्णता प्राप्त करते हैं।

श्रीमद भगवद गीता

आसक्ति से ही कामना का जन्म होता है।

श्रीमद भगवद गीता

सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बदतर होता है

श्रीमद भगवद गीता

जो वास्तविक नहीं है उससे कभी डरो मत।

श्रीमद भगवद गीता

प्रत्येक व्यक्ति का विश्वास और स्वभाव, उसके वातावरण के अनुसार होता है।

श्रीमद भगवद गीता

जो कर्म प्राकृतिक नहीं है वह आपको तनाव देता है।

श्रीमद भगवद गीता

बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के सिवा किसी और पर निर्भर नहीं रहता।

श्रीमद भगवद गीता

हैं अर्जुन! मैं इस धरती की सुगंध हूं, मैं अग्नि का ताप हूं, मैं ही सभी प्राणियों का संयम हूं।

श्रीमद भगवद गीता

मुझे कोई भी कर्म बांध के नहीं रखता क्योंकि मुझे कर्म के फल की कोई चिंता नहीं है।

श्रीमद भगवद गीता

बुद्धिमान व्यक्तियों को बिना किसी स्वार्थ के समाज की भलाई करनी चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

जो व्यक्ति किसी भी देवता की पूजा करते हैं वो अप्रत्यक्ष रूप से मेरी ही पूजा करते हैं।

श्रीमद भगवद गीता

मनुष्य के दुखों का कारण उसका मोह है। जितना अधिक मोह करेगा, उतना ही अधिक कष्ट भोगेगा।

श्रीमद भगवद गीता

ईश्वर भूत, भविष्य और वर्तमान के सभी प्राणियों को जानता है लेकिन वास्तविकता में उस परमात्मा को कोई नहीं जानता।

श्रीमद भगवद गीता

भाग्य के भरोसे केवल वही लोग बैठे रहते हैं जिनके जीवन में कुछ करने के लिए प्रेरणा नहीं होती है।

श्रीमद भगवद गीता

एक अनुशासित व्यक्ति ही अपना, अपने समाज का, अपने देश का विकास कर सकता हैं।

श्रीमद भगवद गीता

श्रेष्ठ बनना भी एक महानता हैं क्योंकि समाज में लोग श्रेष्ठ पुरुषों का ही अनुसरण करते है।

श्रीमद भगवद गीता

इस दुनिया में सबसे महान रहस्य कर्मयोग हैं।

श्रीमद भगवद गीता

जो हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।

श्रीमद भगवद गीता

तुम्हारा क्या गया जो तुम रो रहे हो, तुम क्या लाए थे जो तुमने खो दिया, तुमने क्या पैदा किया जो नष्ट हो गया है, तुमने जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं पर दिया, जो आज तुम्हारा है वो किसी और का होगा। क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है।

श्रीमद भगवद गीता

जीवन ना तो अतीत में है, ना ही भविष्य में, जीवन तो वर्तमान में है।

श्रीमद भगवद गीता

जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है जितना कि मरने वाले के लिए जन्म लेना इसलिए इस पर शोक नहीं करना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जो जैसा विश्वास करता है वैसा ही बन जाता है।

श्रीमद भगवद गीता

फल की इच्छा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।

श्रीमद भगवद गीता

तेरा मेरा, छोटा बड़ा, अपना पराया, ये सब अपने मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके हो।

श्रीमद भगवद गीता

सदैव संदेह करने वाले इंसान के लिए प्रसन्नता न तो इस लोक में है, न ही परलोक में।

श्रीमद भगवद गीता

जो अपने मन को नियंत्रण में नहीं रखता, उसके लिए वह शत्रु के समान काम करता है।

श्रीमद भगवद गीता

अशांत मन को नियंत्रित करना कठिन है लेकिन अभ्यास के द्वारा इसे वश में किया जा सकता है।

श्रीमद भगवद गीता

पृथ्वी पर जिस प्रकार मौसम का बदलाव होता रहता है उसी प्रकार हमारे जीवन में भी सुख दुख आते रहते हैं। इनसे हमे विचलित नहीं होना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता

समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता।

श्रीमद भगवद गीता

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